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(2 Reviews)

Shahi Funeral (eBook)

Manviya mulyo ke vyavsayikaran aur patan per ek hasya vyangy
Type: e-book
Genre: Drama/Play
Language: Hindi
Price: ₹150
(Immediate Access on Full Payment)
Available Formats: PDF

Description

मध्यमवर्गिय परिवार के मूखिया रतनलाल ने अपने बेटे मोहनदास को खूब पढ़ा लिखा कर काबिल इन्सान बनाया यहां तक कि इकलौता होने के बाद भी उसकी इच्छा के चलते अमरिका तक भेज दिया। इस सबके पिछे अपने बेटे मोहनदास को इस आधुनिक, उपभोक्तावादी समाज की प्रस्पिर्धा में आगे देखने की चाह भी रतनलाल के मन में भी रही होगी। इस भाग दौड में उम्र के सातवें दशक में एक रात अचानक रतनलाल की मौत हो जाती है। रतनलाल का मुह लगा नौकर इस बात की खबर अमरिका में रह रहे रतनलाल के बेटे मोहनदास को देता है। अपनी व्यस्ततमक जिवनशैली में भारतिय रिति-रिवाज दाहसंस्कार आदि की परेशानी मोहनदास को अपने पिता की मौत के दुख से अधिक लगती है और इससे बचने के आसान तरिके में मोहनदास अपने पैसो के बल पर दाहसंस्कार का काम एक इवेन्ट मेनेजमेन्ट कम्पनी को दे देता हैै। ऐसे में मानविय मूल्यों और भारतिय संस्कृति के अनुसार मनुष्य के अन्तिम संस्कार के इस नववाचार को हास्य व्यंग्य के रूप में प्रस्तुत किया गया है साथ ही अन्धाधुनिकरण और मानविय मूल्यों के अन्र्तध्वन्ध को प्रदर्शित करने की कोशिश की गई है।

About the Author

लेकेश पालीवाल, विज्ञान विषय में स्नातक लेखन एवं फिल्म निर्माण में रूची रखने वाले एक सफल आई.टी. प्रोफेशनल एवं सामाजिक कार्यकर्ता है। मेवाड़ की लोकनृत्य एवं सास्कृतिक विद्या के संरक्षण एवं संवर्धन हेतु लिखित ’’गवरी - मेवाडस् ईलेक्टीफाईगं डांस डामा एन इलस्टेटेड इन्टोडेक्शन’’ नामक अंग्रेजी किताब में सयुंक्त योगदान के लिये जाने जाते है। सामाजिक व्यवस्थाओं पर लिखे व्यंग्य ’’मामू को सीएम का पत्र’’ तथा ’’नरक परिषद बनी नरक पालिका’’ को भी पाठकों से खूब प्रंशसा मिली। फिलहाल पालीवाल अपने नये प्रयोगों के चलते भारतिय समाज में बौद्ध धर्मावलम्बियों और उपेक्षित समझे जाने वाले तबके के लोगों द्वारा मनाए जाने वाले एक पर्व पर डाक्युमेंटरी फिल्म ’’दिक्षाभूमि एक उपेक्षित तिर्थ’’ तथा दलित परिवार में जन्मी लडकी के संघर्ष पर आधारित कहानी ’’अस्मिता’’ पर फिचर फिल्म में संलग्न है।

Book Details

Number of Pages: 26
Availability: Available for Download (e-book)

Ratings & Reviews

Shahi Funeral

Shahi Funeral

(4.50 out of 5)

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2 Customer Reviews

Showing 2 out of 2
chinmaybhatt 9 years, 1 month ago Verified Buyer

Re: Shahi Funeral (e-book)

नए मौलिक विचारों के अकाल के इस युग में लेखक की संकल्पना जिसमे ''व्यावसायिक हितों को मनुष्य की मृत्यु शय्या तक साधे रखना पूंजीवाद का एक नया आयाम है'' विचार को अत्यंत मनोरंजक रूप से परिभाषित एवं परिलक्षित करने के लिए लेखक बधाई के पात्र हैं l साथ ही यह हास्य व्यंग ये सोचने पर मजबूर करता है कि बढ़ता पूंजीवाद आत्मा ,संवेदना ,मानवीयता से परे नश्वर शरीर की '' मार्केटिंग एवं प्रेजेन्टेशन '' को अधिक महत्त्व दे रहा है l

Ashok jain manthan 9 years, 1 month ago

Re: Shahi Funeral (e-book)

लोकेश पालीवाल का शाही फ्यूनरल पढ़ने के बाद मज़ा आया| लेखक ने कहा तो है माध्यम वर्गीय मोहन लाल परन्तु नाटक का नाम शाही फ्यूनरल रखा ये भी एक व्यंग ही है आज की इस अंधी भागती दुनिया का कि इसमें हम चाहते क्या है ये पता नहीं है | दूसरों के देखा देखी अपने ऊपरी सम्मान को दिखाने के लिए अपने बच्चों को अच्छा पड़ा लिखा कर मोटी तनख्वाह के लालच में या बच्चे की ख्वाइश को पूरा करने विदेश भेज देते है | इन बुजुर्ग का जीवन तो अकेले ही दर्द को झेलते गुजरा परन्तु मरने के बाद भी उनका क्रिया कर्म करवाने के लिए एक इवेंट कंपनी को ठेका देने का विषय अच्छा लगा | उसके बात जो नाटक में हास्य पैदा किया गया वह काफी मजेदार भी था और कुछ सोचने को मजबूर भी करता है |इवेंट कंपनी द्वारा जैसे तैसे क्रिया कर्म करने की तैयारी में निर्देशक के पास भी बहुत कुछ करने को है और पत्रो के पास भी | नाटक मजेदार है हास्य व्यंग से भरा हुवा , मंच पर दर्शको को आनंद दिलवाएगा |
अशोक जैन "मंथन"

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