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धारित्रि – समय, समाज और स्त्रीत्व की अनकही गाथा
"क्या स्त्री केवल एक भूमिका है, या वह स्वयं एक पूरी दुनिया है?"
‘धारित्रि’ केवल शब्दों का संग्रह नहीं, बल्कि एक विचारधारा है—एक ऐसा प्रतिबिंब जिसमें स्त्री के अनगिनत रूप उभरते हैं। यह पुस्तक इतिहास, समाज, दर्शन और समकालीन जीवन के माध्यम से स्त्री के अस्तित्व और उसकी बदलती परिभाषाओं को टटोलती है।
पुस्तक में क्या है?
- प्राचीन से आधुनिक तक – सीता, द्रौपदी, गार्गी, अहिल्या से लेकर आज की सशक्त स्त्री तक की यात्रा।
- नारीवाद का सही अर्थ – क्या यह पुरुषों के विरुद्ध कोई युद्ध है या समानता की सहज खोज?
- विवाह, प्रेम और स्वतंत्रता – क्या स्त्री अब भी सामाजिक बंधनों में जकड़ी है, या उसने अपने लिए नए रास्ते बना लिए हैं?
- मातृत्व और पहचान – माँ होना क्या केवल एक दायित्व है, या यह भी एक स्वतंत्र चुनाव हो सकता है?
- समकालीन स्त्री की चुनौतियाँ...
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