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कृष्ण मोहन त्रिपाठी की आत्मकथा
जब शरीर ने साथ छोड़ दिया, साँसें मशीनों पर टिकीं, और जीवन एक धुंध में खोने लगा — तब उन्होंने हार मानने से इनकार कर दिया।
"मैं फिर जी उठा" सिर्फ बीमारी से लड़ने की कहानी नहीं है, यह आत्मा के पुनर्जागरण की यात्रा है। यह पुस्तक उस व्यक्ति की सच्ची गवाही है, जिसने ज़िंदगी की सबसे गहरी अंधेरी सुरंग में भी उम्मीद की एक किरण तलाशी, और हर साँस को नया अर्थ दिया।
कृष्ण मोहन त्रिपाठी की यह आत्मकथा उनके अनुभवों का संकलन भर नहीं है, बल्कि वह संदेश है हर उस इंसान के लिए जो जीवन की लड़ाई से थक गया है, जो उम्मीद खो चुका है, और जो सोच रहा है कि अब आगे कुछ नहीं बचा।
इस पुस्तक में हैं—
परिवार के अदृश्य बल की गहराई,
आस्था और प्रार्थना की शक्ति,
समाज की असलियत से मिली सीख,
और उस मनुष्य की मौन जिजीविषा, जिसने हर दर्द को सीख...
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