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ज़िन्दगी का हर पहलू किसी न किसी कसक को समेटे जीने का एहसास दिलाता है. खामोशियां पूछती हैं:
खींचती है कोई कशिश बार बार क्यों
चीरती है कोई कसक बार बार क्यों
रह रह के पूछता है मेरा बेताब दिल
उठ रही है कोई तलब बार बार क्यों
ज़िन्दगी एक कसक का नाम है. नाकाम आरज़ू की कसक, जुस्तुजू की कसक, अनकही बात की कसक, तन्हाईयों में तड़प की कसक, दूरियों की कसक, मजबूरियों की कसक, इश्के—इन्तिहा की कसक, वफ़ा और जफ़ा की कसक, दीदार की कसक, और अनसुनी इल्तिजा की कसक.
ज़िन्दगी की लाश को, ज़िन्दगी ढोती रही
और न रोया कोई, ज़िन्दगी रोती रही
मांगने पर मौत भी, इस तरफ आई नहीं
ज़िन्दगी की क़ैद में, ज़िन्दगी रोती रही
इस संग्रह की सभी गज़लें किसी न किसी कसक को अपने दिल में छिपाए आप के दिल को छूने के लिए बेताब हैं.
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