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"मैं ज़िंदा हूँ" एक ऐसी स्त्री की कहानी है जो टूटकर भी बिखरती नहीं। यह कहानी हना खान की है — एक तलाकशुदा माँ, जो समाज की बंदिशों, पितृसत्ता और आर्थिक असमानताओं के विरुद्ध खड़ी होती है। शिक्षा के माध्यम से वह अपने अस्तित्व की पुनर्खोज करती है। लक्षय नामक युवक उसका संबल बनता है, और वह न केवल बी.ए. ऑनर्स (संस्कृत) में टॉपर बनती है, बल्कि यू.पी.एस.ई. में भी सफलता प्राप्त कर एक आई.पी.एस.अधिकारी बन जाती है।
यह कथा महिला सशक्तिकरण, एकल मातृत्व, शिक्षा का महत्त्व, और दूसरा अवसर जैसे मुद्दों को छूती है। हना का जीवन संदेश देता है कि हर स्त्री में पुनर्जन्म की शक्ति होती है बशर्ते उसे विश्वास, अवसर और आत्म-सम्मान मिले।
कहानी का शीर्षक "मैं ज़िंदा हूँ" नायिका के उस आत्म-संघर्ष का प्रतीक है जिसमें वह समाज की हर बेड़ियों को तोड़ते हुए अपने अस्तित्व को फिर से गढ़ती है—नए विश्वास, नए प्रेम...
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