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जीवन विरोधाभासों का संगम है. एक ओर मिलन का उत्सव है तो दूसरी ओर विरह के आंचल में प्रेम के खंडहर.
ए मेरी खुशियों के साए, अब तू मेरे साथ न चल
मेरे दिल की दुनिया का टूट गया है ताजमहल
अब जीवन के कलश में सांसों की कुछ बूंदें रह जाती हैं तो बीते हुए पलों के प्रतिबिम्ब उस सत्य का आभास कराते हैं जो पश्चाताप बनकर कोसता हैः
रही आत्मा सदा कोसती
ये जीवन अभिशाप बन गया
पाप पुण्य की अगम खोज में
कर्म मेरा हर पाप बन गया
है चिन्ताओं की सजी चिता
पश्चाताप जला डालेगा
जो भी औरों को दिया सदा
वो ही संताप मिटा डालेगा
क्या ये काव्य कलश आपकी काव्य पिपासा को शान्त कर पाएगा?
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