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इस किताब की भूमिका उस दिल की तन्हाई से शुरू होती है, जब किशोरी की उम्र में इश्क़ का पहला अल्फाज़ फूटा। निगाहों में महबूब की तस्वीर बसी, और दिल में वफ़ा-बेवफ़ाई दस्तक देने लगी। ग़ज़ल के उर्दू लफ़्ज़, कविता की धुन पर बिखरते जज़्बात इस सफ़र को क़लमबंद करते हैं। इस किताब में आपके दिल की दास्तान, उन उर्दू लफ़्ज़ों की गहराई में मिल जाएगी।
जब हम बेख़बर इश्क़ में डूब जाते हैं, और फिर वफ़ा की दास्तान सुनाने वाली ग़ज़लें चुन लेते हैं। बेवफ़ाई की खनक दिल को छू जाती है तो हम खुद भी शायर बन बैठते हैं। यही वह मोड़ है, जहां हम सोचने लगते हैं क्या हम गलत थे या वो गलत थीं ,शायद हमने ही कुछ कह दिया होगा , शायद उनकी मज़बूरी रही होगी और सबसे तकलीफ़देह होता है जब महबूब महरूम हो जाए । खैर सब एक उम्र पे आकर यहीं...
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